सिर्फ़ हाय - हैल्लो के अलावा मैंने उससे कभी कोई बातचीत की हो ऐसा मुझे याद नहीं आता। हाँ आई आई आई टी - इलाहबाद में हमारे हॉस्टल और सत्र एक ही थे। मैं एम एस कर रहा था और वो एम बी ए। तीसरे सेमेस्टर में दोनों कोर्स की एक पेपर की क्लास साथ साथ होती थी। हमारे प्लेसमेंट भी साथ साथ हो रहे थे।Deloitte दूसरी कंपनी थी जो प्लेसमेंट कि खातिर कैम्पस आई थी और हम में से कई उत्साहित थे क्योंकि अच्छा पैकेज और विश्व की श्रेष्ठ कंपनियों में से एक में काम करने का अवसर कोई हाथ से जाने नहीं देना चाहता था. बहरहाल एम बी ए से पांच और एम एस से तीन को Deloitte ने सेलेक्ट किया, अन्य सभी को निराशा ही हाथ लगी. वो भी उन पांच लोगों में से था जिनको Deloitte ने चुना था.
लगभग एक महीने बाद पता चला कि उसने सी डी एस क्लियेर किया है. अभी एम बी ए का एक सेमेस्टर (चार माह) बाकी था और उसके बाद विश्व कि चार बड़ी कंपनियों में से एक के साथ अपनी प्रोफेशनल कैरिएर शुरू करने का अवसर. पर उसने एक ऐसा निर्णय लिया जिसे हमारी पीढ़ी और शायद अधिकांश जन एक भावुकतापूर्ण निर्णय कहे. उसने सब कुछ छोड़ कर आर्मी ट्रेनिंग ज्वाइन करने का फैसला लिया. हालांकि उस समय हम सभी छात्रों ने उसके निर्णय को बहुत ही सम्मान पूर्वक नज़रिए से देखा था.
आज तीन साल बाद उसके फैसले के पीछे का वास्तविक उद्देश्य समझ आ रहा है. उसने तो शुरू से ही सोच ही रखा था कि देश के लिए जान कि बाज़ी लगा देनी है. इन्द्रापुरम, गाज़ियाबाद के रहने वाले श्रीमती दलबीर कौर और श्री भूपिंदर सिंह के इकलौते पुत्र शहीद कैप्टेन देविंदर सिंह जस का भारतीय सेना ने आज पूरे सैनिक सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर दिया. दो दिन पूर्व जम्मू और कश्मीर के सोपोर जिले में आतंकियों से मुठभेढ़ में कैप्टेन देविंदर सिंह जस अमन के दुश्मनों से संघर्ष करते हुए सीने पर गोलियां खाकर वीरगति को प्राप्त हुए.
"संसार में बहुत कम ही ऐसे लोग होते हैं जो जीवन में जो करना चाहते हैं वो प्राप्त भी कर लेते हैं" कहना है पिता श्री भूपिंदर सिंह का. पर क्या सहज होगा माता - पिता का शेष जीवन अपने आँखों के तारे के बिना. महागन मैनसन अब सदैव ही सूना रहेगा अपने देविंदर के बिना, जिसने अभी पिछले शनिवार को ही होली पर घर आने का वादा किया था, और जो नियति ने कभी पूरा नहीं होने देना था.
आज जबकि लोग कहते हैं की युवा पथभ्रमित हो गए हैं, देविंदर की ज़िन्दगी और शहादत एक मिसाल है. हम तुम्हारे साहस और देशप्रेम कि भावना को तहे दिल से सलाम करते हैं. हम सभी की यादों में देविंदर सदैव जीवित रहेगा और युवाओं को देश के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रेरणा देता रहेगा. देविंदर तुम्हें समर्पित है कवि माखनलाल चतुर्वेदी की कविता "पुष्प की अभिलाषा" की ये पंक्तियाँ -
"मुझे तोड़ लेना वनमाली,उस पथ पर देना तुम फेंक.
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जावें वीर अनेक"
2 comments:
ओह!
सलाम मेरा भी अश्रुपूरित सलाम…
Amartya veer putra ho,
Dridh prateegya soch lo,
Praveen ho jayi bano,
Badhe chalo, badhe chalo.
Jo sahaj hai, vo sajag nahi.
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